मन से कलम तक
भारतीय साहित्य का इतिहास बहुत प्राचीन है, जो न केवल अद्भुत है, बल्कि कालातीत है| साहित्य के इस विशाल समुद्र से मैंने कुछ अनमोल मोती नाटक के रूप में पिरोये हैं| साहित्यकारों की अनुपम भेंट के मूल कथानक को अक्षुण्ण रखते हुए मैंने उन्हें संवाद रूप में प्रस्तुत किया है, जिससे छात्र उनके भाव को समझकर मंच पर प्रस्तुत कर सकें| 32 वर्षों तक मैं हिंदी अध्यापिका के रूप में कार्यरत रही,अब सेवानिवृत होकर मैं लेखन की नयी यात्रा आरंभ कर रही हूँ| अध्यापिका के रूप में मैंने यह अनुभव किया कि हमारे छात्र साहित्य से दूर होते जा रहे हैं, पाठ्यक्रम पूरा करने के अतिरिक्त उनका अधिकतर समय रील्स और सोशल मीडिया में बीत जाता है,किन्तु जब नाटकों जैसी गतिविधियों में उन्हें प्रोत्साहित किया जाए तो उन छात्रों का आत्मविश्वास,उनकी प्रतिभा का प्रदर्शन अद्भुत होता है | जब “मृत्युंजय कर्ण -छाया नाट्य” का मंचन सफलतापूर्वक किया गया,तो दो दिन के बाद ही एक विद्यार्थी ने मुझे कहा कि” मैम अगली बार नाटक का क्या विषय होगा, कृपया मुझे भी एक मौका दीजिएगा|” किसी भी नाटक की सफलता इससे बड़ी नहीं हो सकती|
आशा है कि पाठक इन्हें पढ़कर अपनी राय देंगें और किसी अन्य उपन्यास को संवाद में बदलने के सुझाव भी आमंत्रित हैं|